हिंदी भाषा की उत्पति एवं विकास पर संक्षेप विवरण | क्या आप हिंदी में जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो इस blog को पूरा पढ़े | Allrounder Sita Ram Sahu blog | ceo kaise bane?

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तो चलिए  सबसे पहले हम जानते है कि हिंदी भाषा (Language) की शुरुआत कैसे हुई 

तो आइये आपको कुछ गूगल से प्राप्त जानकारी देता हूँ  ---

प्रश्न 2. हिंदी की उत्पत्ति और हिंदी भाषा के विकास पर संक्षेप में विचार कीजिए।

उत्तर-मध्ययुगीन भारतीय आर्यभाषाओं का काल 10वीं सदी के आस-पास समाप्त हो जाता है और वहीं से आर्य भाषाओं के विकास का काल आरंभ होता है। इसीलिए हिंदी सहित सभी समस्त आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की उत्पत्ति का काल दसवीं सदी ही माना जाता है। यद्यपि इन भाषाओं के विकास के सूत्र आठवीं-नवीं शताब्दी के आस-पास से ही मिलने शुरू हो जाते हैं। पर 10वीं शताब्दी से पूर्व की स्थिति भाषा का संक्रमण काल ही है। इसमें भध्यकालीन भाषा-अपभ्रंश के हास और आधुनिक आर्य भाषाओं के विकास के चिह्न देखे जा सकते हैं। 


अतः संक्रमण काल के बाद हिंदी का विकास दसवीं शताब्दी से स्वीकार किया जाना चाहिए।

हिंदी भाषा के विकास की तीन अवस्थाएँ मानी गई हैं। (1) आदिकाल (2) मध्य काल (3) आधुनिक काल ।

आदिकाल (1000-1500)-यह समय राजनैतिक उथल-पुथल का युग था। इसमें भाषा का उपयुक्त विकास नहीं मिलता। इस काल में भाषा के तीन रूप मिलते हैं। (i) अपभ्रंशाभास. (ii) पिंगल (iii) डिंगल। जिसमें सिद्धों, नाथों और जैनियों का धार्मिक साहित्य उपलब्ध होता है, अपभ्रंशाभास है।

पिंगल-स्थानीय भाषा एवं मध्य देश या ब्रज की भाषा के मिश्रित रूप का नाम पिंगल है। पिंगल उस समय के साहित्य में प्रयुक्त होने वाला मुख्य भाषा-रूप है। डिंगल वह भाषा रूप है, जो अपभ्रंश और राजस्थानी के मिश्रण से बना है। चारणों की वीरगाथात्मक रचनाओं की भाषा डिंगल ही है जिसमें रासो ग्रंथ प्रमुख है। इन भाषा रूपों के अतिरिक्त दो भाषा रूप और दृष्टिगोचर होते हैं। पहला पुरानी हिंदी रूप और दूसरा पुरानी मैथिली का रूप। इसमें अरबी-फारसी के शब्दों का प्रधान्य है और दूसरा रूप विद्यापति की रचनाओं में मिलता है। हिंदी की प्रारंभिक अवस्था के कारण इस काल में विभिन्न बोलियों, उपबोलियों और उपभाषाओं का अंतर स्पष्ट नहीं होता, बल्कि प्रत्येक भाषा रूप में अन्य रूपों का मिश्रण दिखाई देता है।

डिंगल-इस काल की हिंदी भाषा में अपभ्रंश की सभी ध्वनियां आ गई थीं। 'ऐ, औ' जैसी संयुक्त ध्वनियां भी अपना अलग रूप धारण कर चुकी थीं। अपभ्रंश में तद्भव शब्दों का प्राधान्य था। यह प्रवृत्ति आदिकालीन हिंदी में भी मिलती है। मुसलमानों के साथ बढ़ते संपर्क के कारण इस काल की भाषा में फारसी, अरबी, तुर्की आदि मुस्लिम भाषाओं के अनेक शब्द आ गए। इस काल की रचनाओं में उस भाषा का स्वरूप है तो सही पर उसमें मिश्रण भी है। इस काल में भाषा का शुद्ध रूप खोजा जाना कठिन है।


इस समय देशी भाषाओं का विकारा हुआ। इसमें काश्य लिखा गया। काव्यग्रंथों की टीकाएं लिखी गई। लेकिन यत्र-तत्र गश्च की भी कुछ डालत मिलती है। इस काल में भाषा के दो गथ्य रूप विकसित हुए-ब्रज एवं अयधी। शौरसेनी अपभ्रंश से ग्रज का रूप विक्रमित हुआ। हिंदी क्षेत्र के पश्चिमी हिस्से में भाषा का यही रूप व्यवहत है। अर्द्धमागधी अपनंश से अवधी का रूप विकसित हुआ। यह पूर्वी हिस्से में प्रचलित है। अवधी के विकास में लगीदास, कृत्यन, मंझन और जायसी ने विशेष योग दिया। ब्रज के विकास में सूरदास और नंददास आदि का योग सराहनीय है। अवधी का प्रसार मध्यकाल के मध्य तक ही रहा। लेकिन व्रज का प्रसार न केवल मध्यकाल के मध्य तक रहा अपितु समस्त हिंदी क्षेत्र तक फैला। व्रज में कविता आधुनिक काल में भी हुई। जगन्नाथदास रत्नाकर, सत्यनारायण कविरत्न में ग्रज का प्रभाव देखा जा सकता है। पंडित अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' तक ने प्रारंभ में व्रज में ही है कविता की।

व्रज और अवधी के अतिरिक्त हिंदी का खड़ी बोली पर आधारित दक्खिनी रूप भी दिखाई दिया। दक्खिनी का विकास 12वीं शताब्दी के आस-पास उत्तर भारत में उर्दू के रूप

में परिलक्षित हुआं ।

इस काल के शासकों की दरबारी भाषा फारसी थी। फारसी का प्रचार-प्रसार इस युग में प्रमुख हुआ। इसीलिए इस भाषा में अरबी, फारसी व तुर्की शब्दों ने प्रधानता ग्रहण को। इसीलिए उर्दू की ध्वनियों क, ख, ग, ज़, फ आदि ध्वानयाँ हिंदी में समाहित हुई। धार्मिक साहित्य की प्रधानता के कारण इस काल की भाषा में संस्कृत एवं तत्सम शब्दों का भी प्रचलन हुआ। अंग्रेजों, फ्रांससियों के संपर्क में आने के कारण इनकी भाषओं के अनेक शब्द हिंदी में स्थान पा गए।

आधुनिक काल-अठारवीं शती में उत्तरार्द्ध के आखिर में और 19वीं शती के प्राग्भ में हिंदी भाषा का आधुनिक रूप दिखने लगता है। अंग्रेजों ने इस समय अपने धर्म प्रचार व शासन के लिए जनसाधारण में भाषा के प्रचार के लिए फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की। लेकिन 1800 से 1950 तक का समय भाषा की दृष्टि से संक्रांति काल था। इस दौरान हिंदी का स्वरूप पूर्णतः दिखाई नहीं देता। यह तो केवल से संपूर्ण निर्धारण का प्रयास भर दिखाई देता? है। 1850 के आस-पास तक हिंदी का स्वरूप और उस भाषा की दिशा निश्त्तिन हुई। इसो दिशा में बाद में भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके अन्य सहयोगी लेखक, महावीर प्रसाइ द्विवेदी एवं उनके बाद के रचनाकारों ने गद्य-पद्य की भाषा का नया रूप अपनाया। यह खड़ी बोली पर आधारित रूप था और इसे ही राष्ट्र भाषा के रूप में अपनाया गया।

हिंदी के स्वरूप के अतिरिक्त इस युग में अनेक सहभाषाओं, उपचोलियों और केलियों का विकास हुआ। इस काल में भाषा में तत्सम शब्दों का प्रधान्य हुआ। ज्ञान-विज्ञान के अनेक भाषाओं के शब्द समाहित हुए। इनका मूल आधार संस्कृत शब्दावली निश्चित हुआ। अन्य भारतीय भाषाओं, आर्यभाषाओं और आर्येतर भाषाओं की शब्दावली भी हिंदी में ग्रहण की गई। समर्थ साहित्यकारों ने अनेक शब्द भी निर्मित किए। अंग्रेजी भाषा प्रभाव के कारण 'औं' जैसी नई ध्वनि (कॉलेज) विकसित व समाविष्ट हुई। 'भारतेंदु महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य |


                                                                



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What are the differences between a DBMS and RDBMS?. | RDBMS | 4th Semester | AKU | Allrounder SITA RAM SAHU

What are the differences between a DBMS and RDBMS?

ans:- DBMS RDBMS Provides an organized way of managing, retrieving, and storing from a collection of logically related information Provides the same as that of DBMS, but it provides relational integrity.


There are different types of DBMS products: relational, network and hierarchical. The most widely commonly used type of DBMS today is the Relational Database Management Systems (RDBMS)

DBMS:

  • A DBMS is a storage area that persist the data in files.
  • There are limitations to store records in a single database file.
  • DBMS allows the relations to be established between 2 files.
  • Data is stored in flat files with metadata.
  • DBMS does not support client / server architecture.
  • DBMS does not follow normalization. Only single user can access the data.
  • DBMS does not impose integrity constraints.
  • ACID properties of database must be implemented by the user or the developer

RDBMS:

  • RDBMS stores the data in tabular form.
  • It has additional condition for supporting tabular structure or data that enforces relationships among tables.
  • RDBMS supports client/server architecture.
  • RDBMS follows normalization.
  • RDBMS allows simultaneous access of users to data tables.
  • RDBMS imposes integrity constraints.
  • ACID properties of the database are defined in the integrity constraints.

Have a look at this article for more details.


RDBMS: is a DBMS that is based on Relational model that stores data in tabular form.

  • SQL Server, Sybase, Oracle, MySQL, IBM DB2, MS Access, etc.

Features:

  • Database, with Tables having relations maintained by FK
  • DDL, DML
  • Data Integrity & ACID rules
  • Multiple User Access
  • Backup & Restore
  • Database Administration